बजट सत्र : पक्ष और विपक्ष मिल कर कर रहें समय बर्बाद
आज मैं आप सब का ध्यान एक ऐसे मुद्दे की तरफ आकृष्ट करना चाहत हूं जो हम सब के जीवन से जुड़ी हुईं है और इस लेख के माध्यम से संसद ना चलेने देने का कारण भी ढूंढेंगे।
हम सब सांसद सदस्य इस लिए चुनते है की वो देश की सर्वोच्च पंचायत..... संसद में जा कर हम सब के जीवन से जुड़े कानून बना सके और एक स्वस्थ और व्यापक चर्चा का हिस्सा बने। जो की अब ऐसा नहीं हो रहा है।
संसद का बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू हुआ जिसमें महामहिम राष्ट्रपति परम आदरणीय द्रौपदी मुर्मू ने संसद के दोनों सदनों के सदस्यों को संबोधित किया। इस सत्र के दौरान मोदी सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल का अंतिम पूर्ण बजट भी पेश किया जो की अमृत काल का पहला बजट भी था।
निमानुसार बजट के बाद सबसे पहले दोनों सदनों में राष्ट्रपति को उनके अभिभाषण के लिए धन्यवाद ज्ञापित किया जाता है। लेकीन बजट के अगले ही दिन से विपक्ष ने अदानी के मुद्दे पर जेपीसी की मांग को लेकर हंगामा शुरू कर दिया जिसे शुरू के 3 दिन (2,3,6 तारीख़) को कोई काम नहीं हो सका और संसद को रोज एक दिन आगे के लिए स्थागित कर दिया जाता रहा। 4 और 5 फरवरी को शनिवार और रविवार होने से संसद का अवकाश रहा।
गौरतलब है की राष्ट्रपति का अभिभाषण संसदीय इतिहास का एक प्रमुख दस्तावेज होता है लेकिन वह पूरी की पूरी स्पीच सरकार द्वारा लिख करके राष्टपति को दी जाती है जो राष्टपति संसद में दोनों सदन के सामने पढ़ते/ती है।
राष्ट्रपति भाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान सभी दल अपनी-अपनी बात रखते हैं। जाहिर है सत्ता पक्ष राष्ट्रपति के अभिभाषक को अपनी उपलब्धि के रुप में पेश करता है तो वहीं विपक्ष उसमें कमियां निकालता है।
चुकी इस समय का इस्तमाल सभी दलों को करना था इसलिए दोनों ही पक्ष बैकफुट पर जाते हुए संसद चलाने पर राजी हो गए और7 फरवरी से कार्यवाही शुरु हुई और लोकसभा में भाजपा सांसद चंद्र प्रकाश जोशी ने धन्यवाद प्रस्ताव को लोकसभा में बहस के लिए प्रस्ताव पेश किया। उसके बाद सभी दलों के सदस्यों ने बारी-बारी से अपनी बात रखी है। इसी बहस के दौरान राहुल गांधी ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए प्रधानमंत्री मोदी और उद्योगपति गौतम अदानी के संबंधों पर भी बात की लेकिन सरकार ने नियमों का हवाला देते हुए इस स्पीच के ज्यादातर हिस्से को करवाई से बाहर निकलवा दिया।
इसका फायदा यह हुआ कि प्रधानमंत्री को धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के जवाब के दौरान इस मुद्दे पर चुप ही रह गए। प्रधानमंत्री ने दोनों सदनों में जवाब के दौरान अदानी के विषय के छोड़ कर हर मुद्दे पे अपनी बात रखी। वो सब भी कहा जो नहीं कहना चहिए।
सरकार के लिए अदानी का मुद्दा आगे कुआं पीछे खाई वाला सिचुएशन लेकर आया है क्योंकि ना तो वो अदानी का बचाव कर सकते है और नहीं विरोध। अगर वो बचाव करते है तो उन पर अदानी से नजदीकियों का आरोप सही साबित हो जायेगा और अगर नहीं करते है तो उन पर आरोप लगते रहेगें।
प्रधानमंत्री सरनेम की चर्चा के दौरान यह भूल गए की भारतीय परंपरा में शादी के बाद पति के सरनेम के इस्तमाल का ही चलन है जिसको इंदिरा गांधी ने भी आगे बढ़ाया। फिरोज गांधी से शादी के बाद उन्होंने भी उनके सरनेम का इस्तमाल किया और उनके बाद उनके बेटों और पोतो ने इसे आगे बढ़ाया जिसमें कुछ गलत नहीं था। खैर वो तो सोच सोच का फर्क है उसमें कुछ नहीं किया जा सकता।
इस तरीके से संसद के बजट सत्र का पहला हिस्सा बिना किसी काम के सिर्फ रस्म अदागी करके पूरा हो गया।
सत्र के पहले चरण और दूसरे चरण के बीच 1 महीने की छुट्टियां रहती है जिससे सदस्य विभिन्न मंत्रालयों के डिमांड, ग्रांट और सप्लाई का अध्ययन करके आए और अच्छे से व्यापक चर्चा कर संसद से बजट को पास करें। लेकीन इस बीच एक और महत्वपूर्ण घटाना घटी कांग्रेस सासंद राहुल गांधी विदेश दौर पर गए और लंदन के कॉम्ब्रिज विश्वविद्यालय में स्पीच दिया और भारत, भारत के लोकतंत्र आदि को ले करके अपनी बात रखी। इस स्पीच मे उन्होंने तथाकथित लोकतंत्र के रक्षक कहे जाने वाले अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप के अन्य देशों से अपील की वो देखें कैसे भारत में लोकतंत्र का कैसा गला घोटा जा रहा है।
इस बयान को सत्ता पक्ष ने लपक लिया और उन पर पर जोरदार हमले शुरू कर दिया सत्ता पक्ष (भारतीय जनता पार्टी) ने राहुल को इस बयान के लिए माफी मांगने की बात कह रही है, उनका आरोप है कि भारत जैसे संपूर्ण देश में राहुल गांधी ने विदेशी धरती पर विदेशी ताकतों के हस्तक्षेप करने की बात कही है।
इन सबके बीच बजट सत्र का दूसरा हिस्सा 13 मार्च से शुरू हुआ। सत्र का पहला हफ्ता बिना किसी कामकाज के ही बीत गया सिर्फ और सिर्फ़ पक्ष और विपक्ष के हंगामे के कारण। एक तरफ़ विपक्ष जहां अडानी के मुद्दे पर जेपीसी (ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमिटी) के गठन की मांग कर रहा है तो वही सत्ता पक्ष राहुल के बयान को भारत का अपमान बता कर माफी की मांग का रहा है।
इन सबके बीच संसद मे एक दिन का अवकाश (22/03/23) भी हिंदू नव वर्ष की शुरूआत पर रखा गया।
अब बात करते है असल मुद्दे की की इन माननीय सांसदों को किसने यह अधिकार दिया है की वो जनता के पैसे पर चलने वाले संसद का ऐसा मखौल उड़ाया। सत्र का समय और पैसे बर्बाद करके वो कुछ पॉइंट्स तो स्कोर कर लेंगे लेकिन जनता के इतने पैसे को बर्बाद होते कैसे रोकेंगे और इस कीमती समय को कैसे लौटाएंगे।
#सोचिएगा जरूर
अब बात करते है इसी से जुड़े कुछ अन्य पहलू की पहली बात की 70 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है की सत्ता पक्ष ही संसद नहीं चलने देना चाह रहा है क्योंकि अगर संसद चल गई तो उसे जेपीसी की मांग पर रेस्पोंड करना पड़ेगा। हालांकि माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अदानी मुद्दे की जांच को लेकर सेवानिवृत्त जज अभय मनोहर सप्रे की अध्यक्षता में एक न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है।
चाहे तो सरकार इस बात का जवाब दे सकती है की जब ऑलरेडी माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने एक न्यायिक आयोग का गठन कर दिया है तो इसमें संसदीय समिति की जांच की कोई खास आवश्यकता नहीं है लेकिन सरकार इस बात को नहीं कहना चाह रही क्योंकि अगर सरकार के प्रतिनिधि यह बयान देते है तो यह रिकॉर्ड में चला जायेगा। इसलिए सरकार राहुल के बयान का सहरा लेकर संसद नहीं चलने दे रही है क्योंकि उसके पास कुछ खास विधाई कार्य लंबित नहीं है। सरकार को सिर्फ बजट पास करना है वो स्पीकर के माध्यम से गुल्टेनी का इस्तमाल करके कर सकती है इसलिए यह हंगामा चला रहा, जिसके ख़त्म होने की गुंजाइश कम है क्युकी सरकार को संख्या बल का गुमान है।
विपक्ष भी जनता है की जेपीसी का कोई ख़ास औचित्य नहीं है क्योंकि सदन में भाजपा के पास संख्या बल ज्यादा है। जेपीसी मे दलों के संख्या बल के अनुपात के आधार पर ही उसमें सदस्यों की नियुक्ति होती है। लेकिन विपक्ष इस मुद्दे को सिर्फ पॉइंट्स गेन करने और सरकार को बैकफुट पर धकेलने के लिए उठा रहा है।
मुझे लगता सरकार और सत्ता पक्ष के लोगों ने या तो राहुल का भाषण सुना नहीं है या तो सुनकर उसका गलत अर्थ निकाल कर जनता का समय बर्बाद करके इसका दोषरोपण विपक्ष पर कर अपना शान बढ़ना चाहती है।
दूसरी बात जब ऑलरेडी संसद ऑलरेडी काम दिन बैठ रही है तो उसमें एक नई छूटी करने की क्या आवश्यकता थी।
आज संसद का इस्तमाल सिर्फ़ और सिर्फ़ एक पॉलिटिकल प्लेटफॉर्म की तरह किया जा रहा है चाहे हो हंगामा करने का मामला हो या फ़िर कोई भाषण करने का। आज अगर संसद चलती भी है तो सिर्फ उसमें राजनितिक भाषणबाजी ही होती है। किसी भी सदस्य को जनता से जुड़े मामले उठाने का ना तो समय है और ना ही दिलचस्पी। सभी को बस अपने आलाकमान के नजरों में स्टार बनना है।
इन सबके साथ ही हम आजादी के अमृत काल में प्रवेश कर गए हैं। यह तो आने वाला समय ही बताएगा की अमृत काल हमारे संसद की कार्रवाई को बदलने में कितना कारीगर भूमिका निभा पाता है।
अब सोचने हमे है की हम अपने माननीयो को किस काम के लिए चुनते है? हमें अपने जनप्रतिनिधियों से पूछना होगा कि आखिर को स्वस्थ और व्यापक चर्चा का हिस्सा बनने के बजाय ऐसा तनावपूर्ण और गर्म माहौल क्यों बना रहे हैं।
एक छोटे से शेर के साथ अपनी बात खत्म करूंगा:
"बर्बाद गुलिस्ताँ करने को बस एक ही उल्लू काफ़ी था
हर शाख़ पे उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ताँ क्या होगा"
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