करहल की लड़ाई हुई दिलचस्प केंद्रीय मंत्री ने किया नामांकन
अखिलेश को विधानसभा पहुंचने से रोकने के लिए भाजपा ने आगरा से संसाद और केंद्रीय विधि और कानून राज्यमंत्री सत्य पाल सिंह बघेल को चुनावी मैदान में उतार दिया है। भाजपा ने अंतिम समय में एक दलित को उम्मीदवार बनाकर मैनपुरी की इस हाई प्रोफाइल सीट की चुनावी लडाई को बहुत दिलचस्प बना दिया है।
बघेल ने किया नामांकन
उम्मीदवारी का ऐलान होते ही केंद्रीय मंत्री यूपी आए और करहल पहुंचकर अपना नामांकन किया। नमन करने के बाद मीडिया को संबोधित करते हुए बघेल ने कहा कि दुर्ग जैसा कुछ नहीं होता मैंने अमेठी और रायबरेली होते हुए भी देखा है। आज ही पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी नामांकन किया था।
तीसरे चरण में होगा मतदान
करहल सीट पर तीसरे चरण में 20 फरवरी को मतदान होगा। जिसके लिए नामांकन करने की अंतिम तारीख 1 फरवरी है।
अंतिम समय में किया ऐलान
नामांकन की आखिरी तारीख से 1 दिन पहले भाजपा ने उनके नाम का ऐलान किया और उन्होंने दोपहर बाद करहल पहुंचकर अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया।
पार्टी द्वारा जारी किए गए सूची में था नाम
यादव परिवार से भिड़ने का पुराना है इतिहास
ऐसा पहली बार नहीं है जब बघेल अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं। इससे पहले भी बसपा के टिकट पर बघेल फिरोजाबाद लोकसभा सीट से अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ चुके हैं। जिसमें उन्हें 67,000 वोटो से हार का सामना करना पड़ा था।
गड़ेरिया समुदाय से ताल्लुक रखते हैं बघेल
औरैया के भटपुरा गांव में जन्मे बघेल गड़ेरिया समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। गड़ेरिया समुदाय दलित समुदाय में एक उपजाति है। गडरिया समुदाय के लोग खुद को इस क्षेत्र में सामाजिक और आर्थिक तौर पर प्रभाव रखने वाले यादव समुदाय से अलग मानते हैं।
चतुष्कोणिय है मुकाबला
मैनपुरी की करहल सीट 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव सबसे हाई प्रोफाइल सीटों में से एक हो गई है। यहां से सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सपा के उम्मीदवार हैं तो भाजपा ने दलित समुदाय के एसपी सिंह बघेल को चुनाव मैदान में उतारा है। बसपा ने जाटव समुदाय के कुलदीप नारायण को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है जो बसपा की दलित वोटों को (जो 2014 से भाजपा की तरफ चला गया है) उसे वापस पाने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। कांग्रेस द्वारा ज्ञानवती यादव को मैदान में उतारे जाने के बाद सपा के और वोट बैंक माने जाने वाले यादव समुदाय में सेंध लगाने के एक प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है।
राजनीतिक करियर की शुरुआत
मिलिट्री साइंस में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने वाले एसपी सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में सब इंस्पेक्टर हुआ करते थे। 1989 मे सपा संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के अंगरक्षक भी बने। मुलायम सिंह से प्रभावित होकर उन्होंने सपा ज्वाइन कर लिया था।सपा से अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले बघेल पहली बार सपा की टिकट से से ही लोकसभा पहुंचे थे। उन्होंने वर्ष 1998 में जलेसर लोकसभा सीट से भाजपा के ओमपाल सिंह को हराकर सांसद बने थे। उन्होंने वर्ष 1999 और 2004 में भी इसी सीट से दोबारा निर्वाचित हुए। उसी वक्त अखिलेश यादव पहली बार कन्नौज से सांसद चुने गए थे।
अखिलेश के सपा में सक्रिय होने के बाद उन्होंने सपा छोड़ बसपा की सदस्यता ले ली। वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में फिरोजाबाद की लोकसभा सीट से अखिलेश के खिलाफ चुनाव लड़ा लेकिन हार गए। मायावती ने इसका इनाम देते हुए उन्हें जुलाई 2010 में राज्यसभा भेजा। अपने 2 साल का कार्यकाल छोड़कर राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए उन्होंने 2014 में भाजपा ज्वाइन कर ली। तब भाजपा ने फिर से उन्हें 2014 में फिरोजाबाद से अपना प्रत्याशी बनाया।लेकिन सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव के हाथों 1.14 लाख वोटों से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने फिरोजाबाद की टूंडला (सुरक्षित) विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की और योगी सरकार में पशुपालन मंत्रालय,मत्स्य और लघु सिंचाई विभाग के कैबिनेट मंत्री के तौर पर शपथ ली।
2019 में बने सांसद
पार्टी ने फिर उन पर एक बार विश्वास जताते हुए वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में अपने वरिष्ठ नेता और सांसद रामशंकर कठेरिया की जगह आगरा (सुरक्षित) लोकसभा सीट से मैदान में उतारा। उन्होंने भी पार्टी नेतृत्व के विश्वास पर खरा उतरते हुए सपा और बसपा गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी मनोज कुमार सोनी को 2.1 लाख वोटों के बड़े अंतर से चुनाव हराकर संसद पहुंचे।
पिछले वर्ष हुए मोदी मंत्रिमंडल के फेरबदल में 7 जुलाई 2021 को उन्होंने केंद्रीय राज्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। उन्हें विधि और कानून मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया।
पत्नी के लिए मांग रहे थे टिकट
अपनी पत्नी के लिए टूंडला विधानसभा सीट से पार्टी का टिकट मांग रहे थे। 2017 में इसी सीट से विधायक चुने गए थे। अब पार्टी ने उन्हें ही करहल से चुनाव मैदान में उतार दिया है।
क्या होगा सियासी भविष्य
बघेल का सियासी भविष्य उज्जवल हो सकता है।अगर वह चुनाव जीत जाते हैं तो सरकार बनने पर उन्हें डिप्टी सीएम जैसा कोई पद दिया जा सकता है।लेकिन अगर हार भी जाते हैं तब भी उनका कोई खास नुकसान नहीं है।वह सांसद और केंद्र में मंत्री बने रहेंगे साथ ही पार्टी में उनकी स्थिति और मजबूत हो जाएंगी।
करहल सीट पर क्या है जातीय समीकरण
करहल विधानसभा सीट पर सबसे अधिक यादव मतदाताओं की संख्या है। यही मतदाता यहां निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। करहल विधानसभा में मतदाताओं की संख्या 3 लाख 71 हजार है। इसमें यादव मतदाताओं की संख्या लगभग 1 लाख 44 हजार है। मतलब कुल वोटर्स का 38 परसेंट वोट सिर्फ यादवों का है। सपा की पैठ का अंदाजा ऐसे लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में जब बीजेपी की लहर थी उस वक्त भी यहां 5 में से 4 सीटें उसी के खाते में आई थीं।माना जाता है कि एसपी सिंह बघेल समाजवादी पार्टी को बखूबी जानते हैं और इसका फायदा उन्हें मिलेगा।
समाजवादी पार्टी को सिर्फ एक बार मिली है हार
करहल विधानसभा सीट मैनपुरी जिले की महत्वपूर्ण सीट है। साल 1993 से लेकर आज तक सिर्फ एक बार साल 2002 में यहां सपा को हार का मुंह देखना पड़ा था। तब बीजेपी के सोबरन सिंह यादव सपा के उम्मीदवार को हराकर विधानसभा पहुंचे थे। इस बार सपा चीफ इसी सीट से खुद चुनावी मैदान में हैं। मैनपुरी जिले में आने वाली करहल विधानसभा में साल 2017 में कुल 49.57 फीसदी वोट पड़े थे। सोबरन सिंह यादव को यहां 1 लाख 4 हजार 221 वोट मिले थे। वहीं बीजेपी की रमा शाक्य को 65 हजार 816 लोगों ने मतदान किया था। तीसरे नंबर पर बीएसपी केदलवीर रहे, जिन्हें 29 हजार 676 वोट मिले।
Comments
Post a Comment